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पृ॒च्छामि॑ त्वा॒ पर॒मन्तं॑ पृथि॒व्याः पृ॒च्छामि॒ यत्र॒ भुव॑नस्य॒ नाभिः॑। पृ॒च्छामि॑ त्वा॒ वृष्णो॒ऽअश्व॑स्य॒ रेतः॑ पृ॒च्छामि॑ वा॒चः प॑र॒मं व्यो॑म ॥६१ ॥

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पद पाठ

पृ॒च्छामि॑। त्वा॒। पर॑म्। अन्त॑म्। पृ॒थि॒व्याः। पृ॒च्छामि॑। यत्र॑। भुव॑नस्य। नाभिः॑। पृ॒च्छामि॑। त्वा॒। वृष्णः॑। अश्व॑स्य। रेतः॑। पृ॒च्छामि॑। वा॒चः। प॒र॒मम्। व्यो॒मेति॒ विऽओ॑म ॥६१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:61


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी अगले मन्त्र में प्रश्नों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जन ! मैं (त्वा) आप को (पृथिव्याः) पृथिवी के (अन्तम्, परम्) परभाग अवधि को (पृच्छामि) पूछता (यत्र) जहाँ इस (भुवनस्य) लोक का (नाभिः) मध्य से खेंच के बन्धन करता है, उस को (पृच्छामि) पूछता हूँ। जो (वृष्णः) सेचनकर्त्ता (अश्वस्य) बलवान् पुरुष का (रेतः) पराक्रम है, उस को (पृच्छामि) पूछता हूँ और (वाचः) तीन वेदरूप वाणी के (परमम्) उत्तम (व्योम) आकाशरूप स्थान को (त्वा) आप से (पृच्छामि) पूछता हूँ, आप उत्तर कहिये ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - पृथिवी की सीमा क्या? जगत् का आकर्षण से बन्धन कौन? बली जन का पराक्रम कौन? और वाणी का पारगन्ता कौन है? इन चार प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में जानने चाहियें ॥६१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रश्नानाह ॥

अन्वय:

(पृच्छामि) (त्वा) त्वाम् (परम्) परभागस्थम् (अन्तम्) सीमानम् (पृथिव्याः) (पृच्छामि) (यत्र) (भुवनस्य) (नाभिः) मध्याकर्षणेन बन्धकम् (पृच्छामि) (त्वा) त्वाम् (वृष्णः) सेचकस्य (अश्वस्य) बलवतः (रेतः) वीर्य्यम् (पृच्छामि) (वाचः) वाण्याः (परमम्) प्रकृष्टम् (व्योम) आकाशरूपं स्थानम् ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन्नहं त्वा त्वां पृथिव्या अन्तं परं पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभिरस्ति, तं पृच्छामि यद् वृष्णोऽश्वस्य रेतोऽस्ति, तत्पृच्छामि वाचः परमं व्योम, त्वा पृच्छामीति वदोत्तराणि ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - पृथिव्याः सीमा लोकस्याकर्षणेन बन्धनं, बलिनो जनस्य पराक्रमो वाक्पारगश्च कोऽस्तीत्येतेषां प्रश्नानामुत्तराणि परस्मिन् मन्त्रे वेदितव्यानि ॥६१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पृथ्वीची सीमा कोणती? या जगाचा आकर्षणकर्ता (धारणकर्ता) कोण आहे? पराक्रमी बलवान माणसांच्या पराक्रमाचा आधार कोणता? वाणीचा यथायोग्य उपयोग कोण करतो? या प्रश्नाची उत्तरे पुढील मंत्रात आहेत.